शनिवार, 23 अगस्त 2008
राजनीति: राज करने की नीति
वाह रे राजनीति! कलयुग का सर्वाधिक प्रभाव अगर कही दिखता है तो वो है राजनीतिक गलियारा। क्षण भर में इधर और अगले क्षण उधर। कथनी और करनी में इतना बड़ा फर्क जो यहाँ मौजूद है शायद ही कहीं दिखे। कल के विरोधी आज के मित्र बने फिरते हैं। जनता को शब्दों के मायाजाल में बाँधने का प्रयास किया जाता है. झारखण्ड की वर्तमान राजनीतिक उठा-पटक को देखकर मैंने ये छोटी सी पद्यात्मक रचना की है-
स्वार्थ समर है राजनीति ये,
पद पाने की होड़ यहाँ;
मृग-मरीचिका के पीछे,
हर कोई रहा है दौड़ यहाँ।
भ्रष्टाचार बना है धर्म,
मिथ्या ही इनकी वाणी है;
राजनीति में सत्य अहिंसा,
बस अब एक कहानी है।
जाति-सम्प्रदाय में बांटा,
राजनीति ने प्यार हमारा;
छल-प्रपंच और धोखा हमसे,
नेताओं में है भाईचारा।
नीतियाँ बनती हैं बैठकर,
बस सत्ता में आने को;
खेले जाते हैं सारे खेल,
अब कुर्सी ऊँची पाने को।
राजनीति का मतलब बस,
राज करने की नीति है;
हार चुकी मानवता देखो,
बस कुर्सी ही जीती है।
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2 टिप्पणियां:
अच्छी रचना है प्रमोद जी.
@भ्रष्टाचार बना है धर्म,
बात एक ही है, पर मैं कहूँगा, भ्रष्टाचार है इनका धर्म.
नीति की हदें पार कर राजनीति अब बनी बजार /
निज नीति ही राजनीति है वाह रे हिन्दुस्तान /
http://manoria.blogspot.com/2008/08/blog-post_2344.html#links
आपकी सुंदर कविता पढ़कर मुझे भी कुछ लाईने याद आ गयी कृपया ध्यान चाहूँगा
अच्छे विचारो वाली सुगठित कविता के लिए बधाई स्वीकार करें
कृपया पधारे
http://manoria.blogspot.com and http://kanjiswami.blog.co.in
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