आदतें अक्सर,
बुरी होती हैं,
अच्छी आदतें कम ही-
लोग पालते हैं;
इसी सूचि से है,
भूलने की आदत,
इसे हम जैसे लोग,
अच्छी आदत-
मानते हैं।
सरकारी बाबुओं में,
अगर ये आदत नहीं होती,
आपको लगता होगा-
सबकुछ सुधर जाता;
पर उन बेचारे,
दक्षिणा ले काम करने वाले,
सरकारी बाबुओं का,
सारा बजट बिगड़ जाता।
आपसी विद्वेष,
सांप्रदायिक-जातिगत विभेद,
भाषावाद और क्षेत्रवाद,
अगर हम भूल जाते;
जीवन भर हम,
एक दुसरे से जुड़े रहकर,
कैसे? देश के टुकड़े करने को,
अलग देश और राज्य की,
मांगे रख पाते।
हमारे नेता,
चुनावों के समय,
किए हुए वादे अक्सर,
हैं भूल जाते ;
इस भूल पाने की क्षमता,
अगर उनमे नही होती,
अगले चुनावों में,
भला कैसे-
नए वादे कर पाते।
राजनितिक पार्टियाँ,
रैलियां और बंद,
मान लो अगर-
गलती से भूल जाते;
हम कैसे घरों में,
काम के दिन भी बैठ,
पत्नी-बच्चों संग,
छुट्टियाँ मना पाते।
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2 टिप्पणियां:
भूलते नहीं हैं, भूलने का नाटक करते हैं,
यह है मानव जीवन के गिरने की पराकाष्टा.
सुंदर कविता आपके मेरे ब्लॉग पर पधार कर उत्साह वर्धन के लिए धन्यबाद. पुन: नई रचना ब्लॉग पर हाज़िर आपके मार्ग दर्शन के लिए कृपया पधारे और मार्गदर्शन दें
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