
वाह रे राजनीति! कलयुग का सर्वाधिक प्रभाव अगर कही दिखता है तो वो है राजनीतिक गलियारा। क्षण भर में इधर और अगले क्षण उधर। कथनी और करनी में इतना बड़ा फर्क जो यहाँ मौजूद है शायद ही कहीं दिखे। कल के विरोधी आज के मित्र बने फिरते हैं। जनता को शब्दों के मायाजाल में बाँधने का प्रयास किया जाता है. झारखण्ड की वर्तमान राजनीतिक उठा-पटक को देखकर मैंने ये छोटी सी पद्यात्मक रचना की है-
स्वार्थ समर है राजनीति ये,
पद पाने की होड़ यहाँ;
मृग-मरीचिका के पीछे,
हर कोई रहा है दौड़ यहाँ।
भ्रष्टाचार बना है धर्म,
मिथ्या ही इनकी वाणी है;
राजनीति में सत्य अहिंसा,
बस अब एक कहानी है।
जाति-सम्प्रदाय में बांटा,
राजनीति ने प्यार हमारा;
छल-प्रपंच और धोखा हमसे,
नेताओं में है भाईचारा।
नीतियाँ बनती हैं बैठकर,
बस सत्ता में आने को;
खेले जाते हैं सारे खेल,
अब कुर्सी ऊँची पाने को।
राजनीति का मतलब बस,
राज करने की नीति है;
हार चुकी मानवता देखो,
बस कुर्सी ही जीती है।