बेआवाज टूट रहा,
चुपके से-
पर क्यों टूट रहा है?
जीवन डोर से,
निरंतर-
रिश्ता, टूट रहा है।
हार कर भी,
नही छोड़ता रार,
गिरता है,
फ़िर उठता है,
पर एक बार फ़िर-
बदहवास सा-
गिरने के लिए।
निशान छोड़े जा रहा-
पर नही चलने को,
तैयार कोई खड़ा-
ख़ुद ही फ़िर,
है लौटता-
तेज क़दमों से,
निशान मिटाने को।
अपने आप ही,
है फ़िर करता नाद,
हारकर भी जीतने की,
घोषणा करता जाता-
बेशर्म सा यह,
नृशंश आतंकवाद।
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5 टिप्पणियां:
badiya kavita
Nirantarata banae rakhen...
wah...
मजेदार सुंदर कविता बहुत बहुत शुक्रिया आपके मेरे ब्लॉग पर पधारने का धन्यबाद कृपया पुन: पधारे मेरी नई रचना मुंबई उनके बाप की पढने हेतु सादर आमंत्रण
जब इतने अच्छे व्यंग्यकार को रचनाओं में हास्य व्यंग्य कि पुट देते हो तो फिर लिखते क्यों नहीं /१७ तारीख के बाद ये दूसरी १७ आने को है /लिखना हमारा धर्म है, कर्म है, व्यवसाय नहीं / अब कौन पढता है कौन लाभान्वित होता है यह सोचोगे तो कभी न लिख पाओगे /आज से ५ हजार साल पूर्व व्यास जी कहते थे मेरी कोई सुनता ही नहीं /साहित्य स्रजन एक सहना भी है और स्वांत सुखाय भी इसलिए अनुरोध करूंगा कि लिखो /
दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ ""
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